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Ramchandra Keh Gaye- Gopi Dilip Kumar (1970)


Ramchandra Keh Gaye- Gopi



रामचंद्र कह गए सियासे ऐसा कलजुग आएगा
भैया, आज तो हम तुम्हे एक नए जमानेकी कथा सुनायेगे
अरे बाबा किसीभी जमानेकी सुनाओ पर सुनाओ ज़रूर
सियावर रामचंद्रकी जाया



हे रामचंद्र कह गए सियासे ऐसा कलजुग आएगा
हंसा चुगेगा दाना दुनका कौव्वा मोती खायेगा

सियाने पूछा,
कलजुगमे धरम करमको कोई नही मानेगा?
तो प्रभु बोले

धरम भी होगा, करम भी होगा
परन्तु शर्म नही होगी
बात बात पर माता पिताको
लड़का आंख दिखाएगा
राजा और प्रजा दोनो इनमे
होगी निसदिन खीचातानी
कदम कदम पर करेगे
दोनो अपनी अपनी मन मानी
जिसके हाथ मे होगी लाठी
भैंसा वाही ले जाएगा
सुनो सिया कलजुगमे काला धन और काले मन होगे
चोर उचक्के नगर सेठ और प्रभु भक्त निर्धन होगे
जो होगा लोभी और भोगी वो जोगी कहलायेगा
मंदिर सूना सूना होगा भरी रहेगी मधुशाला
पिताके संग संग भरी सभामे नाचेगी घरकी बाला
कैसा कन्यादान बिदाही कन्याका धन खायेगा

मूरख की प्रीत बुरी जेकी जीता बुरी
बुरे संग बैठा बैठा भागे ही भागे
काजल की कोठारी मे कैसे ही जाताना करो
काजल का दाग भाई लागे ही लागे
कितना जाती हो कोई कितना सटी हो कोई
कामनी के संग काम जागे ही जागे
सुनो कहे गोपीराम जिसका है रामधामा

उसका तो फन्दा गले लागे ही लागे

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